इसराइल के खुद के आंकड़े यह बताते हैं कि सितंबर महीने में ग़ज़ा में भेजे जाने वाली सहायता में भारी गिरावट आई है.
इसके बाद यह आरोप लग रहे हैं कि इसराइली सेना हमास के लड़ाकों को भूखा मारने के मक़सद से खाद्य सामग्री की आपूर्ति में बाधा डाल रही है.
हालांकि, खाने की कमी ने संयुक्त राष्ट्र के एक शीर्ष अधिकारी को यह चेतावनी देने के लिए प्रेरित ज़रूर किया कि उत्तरी ग़ज़ा में “ज़िंदा रहने के लिए राहत सामग्री ख़त्म हो रही है.”
इस बीच, संयुक्त राष्ट्र में मानवीय मामलों और आपातकालीन सहायता की कार्यवाहक महासचिव जॉयस मसूया ने पिछले सप्ताह कहा कि इसराइल ने 2 से 15 अक्तूबर तक उत्तरी ग़ज़ा में भेजी गई सारी खाद्य सहायता पर रोक लगा दी थी.
उन्होंने बताया कि सोमवार को इलाक़े में सहायता की “छोटी खेप” को पहुंचने की अनुमति दी गई, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि ईंधन आपूर्ति में कमी के कारण कुछ ही दिनों में बेकरियों को बंद करना पड़ेगा.
हालांकि, इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने बार-बार इस बात से इनकार किया है कि उनकी सरकार जानबूझकर उत्तरी ग़ज़ा में भोजन की आपूर्ति में बाधा पहुंचा रही है.
मगर, अमेरिका ने अपने सहयोगी (इसराइल) को चेतावनी दी है कि वह तुरंत मानवीय सहायता को बढ़ाए या फिर सैन्य सहायता में कटौती करने का जोखिम उठाए.
और अब अमेरिका ने कहा है कि वह उत्तरी ग़ज़ा में इसराइल की कार्रवाइयों पर नज़र रख रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसराइल “भुखमरी की नीति” नहीं अपना रहा है.
गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक आकलन में यह चेतावनी दी गई कि “पूरी ग़ज़ा पट्टी पर अकाल का ख़तरा मंडरा रहा है. और बढ़ती दुश्मनी के कारण यह चिंता बढ़ रही है कि इससे सबसे ख़राब हालात पैदा हो सकते हैं.”
ग़ज़ा में आवाजाही के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी इसराइली की सैन्य इकाई कोगाट के पास है.
उसके मुताबिक़ अक्तूबर के पहले 12 दिनों में कुल 5 हज़ार 840 टन खाद्य आपूर्ति ग़ज़ा पहुंचाई गई, जबकि सिंतबर में यह आंकड़ा 75 हज़ार 898 टन था.
संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि पिछले रविवार से पहले के दो हफ़्तों तक उत्तरी ग़ज़ा में कोई मदद नहीं पहुंची थी.
इसके बाद अमेरिका ने एक पत्र में अपने सहयोगी (इसराइल) को ग़ज़ा में तुरंत मानवीय पहुंच को बढ़ाने या फ़िर सैन्य सहायता में कटौती का जोख़िम उठाने की चेतावनी दी थी.
संयुक्त राष्ट्र ने अपने आंकड़ों में कहा है कि ग़ज़ा में प्रवेश करने वाली लॉरियों की तादाद एक साल पहले जंग की शुरुआत के बाद से काफ़ी कम है.
बुधवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जानकारी देते हुए जॉयस मसूया ने बताया कि इसराइल ने अक्तूबर के पहले दो सप्ताह में राशिद चेक प्वाइंट की मदद से सहायता पहुंचाने के 54 प्रयासों में से केवल एक को सफल होने दिया है.
यह चेक प्वाइंट ग़ज़ा शहर के दक्षिण में है, जहां मुख्य तटीय सड़क पूर्व-पश्चिम इसराइली सैन्य सड़क से मिलती है. यह प्रभावी ढंग से इलाक़े को आधे हिस्से में बांटती है.
जॉयस मसूया ने कहा कि मदद की अन्य चार कोशिशों में रुकावट का सामना करना पड़ा, लेकिन अंततः उनमें सफलता हासिल हुई.
मसूया ने कहा कि उत्तरी ग़ज़ा में मौजूदा स्टॉक का वितरण जारी है, लेकिन आपूर्ति तेज़ी से कम हो रही है.
इस बीच, वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम ने मंगलवार को फाइनेंशियल टाइम्स को बताया कि अगर इसराइल उत्तरी ग़ज़ा में तुरंत ताज़ा आपूर्ति की सुविधा नहीं देता है, तो डेढ़ सप्ताह में उसके पास लोगों को देने के लिए खाद्य सामग्री ख़त्म हो जाएगी.
फ़लस्तीनी इलाक़ों के लिए वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम के निदेशक एंटोनी रेनार्ड ने भी बताया कि ज़मीनी स्तर पर उनकी टीम के पास आटे की आपूर्ति केवल एक सप्ताह के लिए बची है.
वहीं, कोगाट ने बताया कि मदद ले जा रहे 50 ट्रकों ने बुधवार को ग़ज़ा पट्टी के उत्तर में प्रवेश किया.
ग़ज़ा में मानवीय मामलों के तालमेल के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के प्रमुख जॉर्जियोस पेट्रोपोलस ने बीबीसी को बताया कि जब सहायता इसराइली चेक प्वाइंट्स के ज़रिए ग़ज़ा में प्रवेश करती है, तो अक्सर सहायता करने वाले समूह इसे दूसरी तरफ ठीक से बांट नहीं पाते हैं.
उन्होंने बताया कि सोमवार को ग़ज़ा में 50 ट्रकों को सहायता करने के लिए प्रवेश की अनुमति दी गई थी, लेकिन इसराइली सुरक्षा बलों (आईडीएफ) ने उनमें से महज़ 30 को ही अनुमति दी.
इसराइली सेना उत्तरी ग़ज़ा में क्या कर रही है?
आईडीएफ ने दो हफ़्ते पहले उत्तरी ग़ज़ा में हमास के ख़िलाफ़ एक नए अभियान की शुरुआत की थी. उनका कहना है कि वह हमास के लड़ाकों को इलाक़े में फिर से इकट्ठा होने से रोकना चाहता है.
सैन्य अधिकारियों ने उत्तरी ग़ज़ा पट्टी में जगह खाली करने का एक आदेश भी जारी किया, जिसमें उन्हें दक्षिण की तरफ जाने के लिए कहा गया.
इस आदेश से लगभग 4 लाख लोग प्रभावित होंगे, लेकिन कई लोगों ने वहां से जाने से मना कर दिया. क्योंकि, वे लगातार विस्थापन से थक चुके थे और ऐसी जगह जाने से डर रहे थे, जहां उन तक सहायता नहीं पहुंच रही हो.
दरअसल, इसराइली सेना ने उत्तरी ग़ज़ा शहर के घनी आबादी वाले जबालिया इलाक़े को घेर लिया है. सेना ने वहां बमबारी भी की है, जिसमें एक शहरी शरणार्थी कैंप भी शामिल है.
इसराइल का कहना है कि उत्तरी ग़ज़ा में भुखमरी की कोई नीति नहीं है, लेकिन कुछ लोगों को लगता है कि मानवीय सहायता आपूर्ति में कमी उसी बात की ओर इशारा करती है, जिसे इसराइली मीडिया ने “जनरलों की योजना” करार दिया है.
रिटायर्ड मेजर जनरल जियोरा इलैंड ने हाल ही में बीबीसी को बताया था कि उत्तरी ग़ज़ा से नागरिकों को निकाला जाना चाहिए और बचे हुए हमास के लड़ाकों के सामने ‘आत्म समर्पण करने या भूखे मरने’ का विकल्प छोड़ा जाना चाहिए.
प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने ले फ़िगारो को दिए गए एक इंटरव्यू में ज़ोर देकर कहा, “हमारे ऊपर आरोप है कि हम जानबूझकर आबादी को भूखा रखने की नीति अपना रहे हैं, ये पूरी तरह से निराधार हैं.”
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को पहले बताया था, “इसराइल ग़ज़ा में हर पुरुष, औरत और बच्चों को हर दिन तीन हज़ार कैलोरी से ज़्यादा मात्रा वाले भोजन की आपूर्ति को बनाए रख रहा है.”
उत्तरी ग़ज़ा में फ़लस्तीनी क्या कह रहे हैं?
उत्तरी ग़ज़ा में रहने वाले लोगों ने बीबीसी को बताया कि हालिया वक़्त में भोजन और पानी की सप्लाई में भारी गिरावट आई है.
जबालिया के रहने वाले अवाद हसन अशौर ने बताया कि उनके इलाक़े के रहने वाले लोगों को बहुत कम खाना मिल रहा है, और उन्हें मिलने वाला पानी भी काफ़ी नहीं है.
वह कहते हैं, “हमें हर दूसरे या तीसरे दिन में एक वक़्त का खाना मिलता है. वह या तो दोपहर का भोजन होता है या फिर नाश्ता”.
ऐसे ही यूसुफ़ कर्मौत, जो जबालिया के एक विस्थापित व्यक्ति हैं, उन्होंने बीबीसी को बताया कि खाने और पीने के पानी की कमी की वज़ह से इलाक़े के रहने वालों के लिए ज़िंदगी जीना मुश्किल होता जा रहा है.
उन्होंने कहा कि जो थोड़ा बहुत खाने वाला सामान बिक्री के लिए उपलब्ध था, वह बहुत महंगा था. उन्होंने बताया, “उत्तरी ग़ज़ा में ज़िंदगी और भी ज़्यादा खराब होती जा रही है, वहां खाना बिल्कुल नहीं बचा है”.
यूसुफ़ ने कहा, “हम ऊंची कीमतों से परेशान हैं. उदाहरण के लिए बीन्स का एक डिब्बा लें, जिसकी कीमत 20 शेकेल (साढ़े पाँच डॉलर) है, जो मेरे लिए बहुत ज़्यादा है क्योंकि न तो मैं काम करता हूं और न मेरे बच्चे काम करते हैं. हम सभी के पास पैसे कमाने का कोई ज़रिया नहीं है.”
इसी तरह, सयाब अल-ज़ाद ने कहा कि मांस या ताज़ी सब्ज़ियां मिलना तो नामुमकिन सा था. बहुत कम लोग ही ऐसी चीजों को ख़रीद पाते थे. इसकी जगह उनका परिवार काफ़ी हद तक रोटी पर निर्भर था.
उन्होंने कहा, “हमारे लिए रोटी का इंतज़ाम करना भी बहुत बड़ी चुनौती है, रोटी का इंतजाम करने के लिए आपको अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है”.
ग़ज़ा में मानवीय मामलों के तालमेल के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के प्रमुख जॉर्जियोस पेट्रोपोलस ने बताया कि ग़ज़ा में सक्रिय बदमाशों के गिरोह समस्या को और बढ़ा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि मदद ले जाने वाले कई लॉरी चालकों ने बताया है कि खाना और शेल्टर सामग्री ले जाते समय उन्हें लूट लिया गया.
पेट्रोपोलस ने बीबीसी को बताया, “मैंने देखा कि कई परिवारों के आश्रयों को सर्दियों के लिए प्लास्टिक की चादरों से ढका जा रहा है. इन्हें प्लास्टिक के उन बक्सों के ऊपर रखा जा रहा है, जिनमें लोग रहते हैं”.
उन्होंने कहा, “परेशानी यह है कि हमें इसे उन लोगों को मुफ़्त देना चाहिए था, जिन्हें इसकी ज़रूरत है. लेकिन उन्हें लूट लिया गया और लोगों को बेच दिया गया”.
पेट्रोपोलस ने कहा, “लूटे गए उपकरणों और सहायता को पहले से ही गरीबी में ज़िंदगी बिता रहे लोगों को वापस बेचने से जो नुकसान हो रहा है, वह बहुत बड़ा है.”
इसराइल लंबे वक्त से हमास पर यह आरोप लगाता आया है कि वह सहायता सामग्री को चुरा रहा है, हालांकि हमास ने इस आरोप से इनकार किया है.
आईपीसी ने अकाल की चेतावनी दी
भोजन के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के खास दूत माइकल फाख़री ने सोमवार को बीबीसी न्यूज़आवर प्रोग्राम में एक इंटरव्यू के दौरान इसराइल पर ग़ज़ा में जानूबूझकर भुखमरी की नीति अपनाने का आरोप लगाया.
उन्होंने कहा, “हमने उनके भुखमरी अभियान के असर को देखा है, जिसमें मृत्यु दर बहुत ज़्यादा है, जिसकी वज़ह से लोग न केवल भूख से मर रहे हैं, बल्कि डीहाइड्रेशन और बीमारी से भी मर रहे हैं, जैसा अक्सर होता है”.
“इसराइल ने हमें बताया है कि वह हक़ीक़त में क्या कर रहा है, जो कि उसने बहुत हद तक पूरा भी कर लिया है और हमने उसके प्रभावों को देखा है.”
संयुक्त राष्ट्र समर्थित इंटीग्रेटिड फूड सिक्योरिटी फे़ज़ क्लासिफिकेशन (आईपीसी) की गुरुवार को आई रिपोर्ट में बताया गया कि लगभग 18.4 लाख लोग खाद्य असुरक्षा के उच्च स्तर का सामना कर रहे हैं.
इस रिपोर्ट के मुताबिक़ जिसमें से 664,000 लोग भूख के “आपातकालीन” स्तर से जूझ रहे हैं और लगभग 133,000 लोग “भयावह” स्तर का सामना कर रहे हैं.
आख़िरी आंकड़ा जून में जारी की गई अंतिम रिपोर्ट की तुलना में तीन-चौथाई कम है.
आईपीसी ने इस गिरावट की वज़ह मई और अगस्त के बीच मानवीय सहायता और वाणिज्यिक आपूर्ति में हुई अस्थायी वृद्धि को बताया है.
हालांकि आईपीसी ने आशंका जताई कि आने वाले महीनों में “भयावह” भूख का सामना करने वाले लोगों की तादाद लगभग तीन गुना हो सकती है, क्योंकि सितंबर से भोजन की उपलब्धता और सहायता के वितरण में भारी गिरावट देखने को मिली है.
रिपोर्ट के जवाब में, संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुटेरेस ने एक्स पर लिखा, “भुखमरी का ख़तरा मंडरा रहा है, जिसे सहा नहीं जा सकता. क्रॉसिंग प्वॉइंट्स को तुरंत खोला जाना चाहिए.”
उन्होंने लिखा, “अधिकारियों की बाधाओं को हटाया जाना चाहिए और साथ ही क़ानून और व्यवस्था को बहाल करना चाहिए ताकि संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां लोगों की ज़िंदगी बचाने के लिए राहत सामग्री पहुंचा सकें.”
वॉशिंगटन में इन हालात को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं. इस वजह से अधिकारियों ने इसराइल को ग़ज़ा में मानवीय मदद की पहुंच बढ़ाने के लिए 30 दिनों का वक्त दिया है, अन्यथा अमेरिका की ओर से मिल रही सैन्य सहायता में कटौती का जोखिम उठाने की चेतावनी दी है.
इसराइली सरकार को लिखे गए अमेरिकी पत्र पर विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने हस्ताक्षर किए थे.
दोनों ने कहा था कि वे पत्र इसलिए लिख रहे हैं ताकि ग़ज़ा में लोगों के बिगड़ते हालात पर अमेरिकी सरकार की गहरी चिंता को रेखांकित किया जा सके. साथ ही इन हालात को बदलने के लिए इसराइली सरकार के सामने तुरंत और लगातार कार्रवाई करने की मांग को रख सकें.
लेकिन यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने अमेरिका की इस चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर दिया.
उन्होंने ब्रसेल्स में संवाददाताओं से कहा, “अमेरिका इसराइल से इस बात को कहता रहा है कि उन्हें ग़ज़ा में मानवीय मदद को बढ़ाना होगा लेकिन उन्होंने एक महीने की देरी कर दी है.”
“जिस संख्या में ग़ज़ा में लोगों की मौत हो रही है, उसके हिसाब से देखें तो एक महीने में न जाने कितने लोगों की मौत हो चुकी होगी.”