कर्नाटक

कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने की मंज़ूरी दे दी है

पिछले 10 साल से हर कोई इस बात को लेकर हैरान था कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने सिद्धारमैया के ख़िलाफ़ कोई मामला दर्ज करने के बारे में क्यों नहीं सोचा. जबकि ऐसा कई ग़ैर बीजेपी नेताओं और मुख्यमंत्रियों के साथ हो चुका है.इसके बाद से बीजेपी नैतिक आधार पर सिद्धारमैया के इस्तीफ़े की मांग कर रही है.वहीं कांग्रेस का कहना है कि सिद्धारमैया पर लगाए गए आरोप ‘राजनीति से प्रेरित’ हैं. सिद्धारमैया ने भी साफ कर दिया है कि वो पद से इस्तीफ़ा नहीं देंगे. क्या है मामला? राजनीति में सिद्धारमैया का 40 साल के रिकॉर्ड पर तब तक कोई दाग़ नहीं लगा था, जब तक राज्यपाल के सामने उनके ख़िलाफ़ पहली याचिका दायर नहीं की गई.राज्यपाल थावरचंद गहलोत के सामने सिद्धारमैया के ख़िलाफ़ तीन शिकायतें हैं.इन तीनों शिकायतों में कही गई एक आम बात ये है कि सीएम की पत्नी पार्वती बी.एम. को मैसूर के विजयनगर लेआउट में 14 जगहों पर ज़मीन दी गई थीं. ये उन्हें केसारे गांव में उनकी 3.16 एकड़ ज़मीन के बदले में दी गई, जिस पर एमयूडीए (मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथोरिटी, मूडा) ने अनधिकृत रूप से कब्ज़ा किया हुआ था.आसान भाषा में कहें तो सीएम की पत्नी पार्वती के पास जो 3.16 एकड़ ज़मीन थी, उसे एमयूडीए ने विकास के लिए ले लिया था और मुआवज़े के तौर पर उन्हें मैसूर के महंगे इलाके़ में ज़मीन दी गई.मुख्यमंत्री ने इस मामले में यह कहकर अपना बचाव किया है कि जगह के आवंटन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी.उन्होंने कैबिनेट की बैठक के तुरंत बाद एक संवाददाता सम्मेलन में पूछा, “मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया है कि मुझे इस्तीफ़ा देना चाहिए.”कैबिनेट की बैठक में उनका पूरा समर्थन भी किया गया. जब तक कि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सिद्धारमैया की भूमिका पर कोई फ़ैसला नहीं करता है, ज़ाहिर तौर पर सिद्धारमैया के सवाल पर तब तक बहस की जा सकती है.हालांकि सत्ताधारी दल और विपक्ष के बड़े नेता और राजनीतिक विश्लेषक भी इस बात पर एकमत हैं कि सिद्धारमैया के पास जो नैतिक अधिकार था, “उसकी चमक धीमी पड़” गई है, चाहे वह मुख्यमंत्री के रूप में हों या विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में.

सिद्धारमैया क्यों महत्वपूर्ण हैं?

कर्नाटक में राजनीतिक विश्लेषक और यहां के राजनीतिक हलकों में आमतौर पर यह मानते हैं कि सिद्धारमैया पिछड़े वर्गों के नेता हैं.

डी देवराज उर्स ने ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यकों के लिए जिस सामाजिक धुरी विकसित किया था, उसे सिद्धारमैया ने फिर से प्रज्वलित किया.

उनके इस विलक्षण अभियान ने उनके क़द को इतना बड़ा कर दिया कि जब जनता दल सेक्युलर उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया था, तब कांग्रेस ने उन्हें पार्टी में शामिल होने के लिए औपचारिक रूप से आमंत्रित किया था. उनके शब्दों में ‘अहिंदा’ अल्पसंख्यकों, ओबीसी और दलितों के लिए कन्नड़ भाषा में छोटा नाम है.

राजनीतिक जानकार इस बात पर सहमत नज़र आते हैं कि राजनीति और राष्ट्रीय स्तर पर सिद्धारमैया का क्या महत्व है और उन्हें क्यों निशाना बनाया गया है.

प्रोफेसर मुज़फ़्फ़र असदी कहते हैं, “यह बिल्कुल स्पष्ट है कि बीजेपी सिद्धारमैया को इसलिए भी निशाना बना रही है क्योंकि वो राहुल गांधी के क़रीबी हैं. हमें नहीं भूलना चाहिए कि राहुल गांधी लगातार बीजेपी पर हमला बोल रहे हैं.”

प्रोफे़सर शास्त्री कांग्रेस के लिए सिद्धारमैया के महत्व की कई वजह बताते हैं.

वो कहते हैं, “वास्तव में कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का एक सुरक्षित विकल्प चुना, क्योंकि उन्हें उस समय नेतृत्व करने के लिए बड़े कद के नेता की ज़रूरत थी. कांग्रेस के नियंत्रण वाले राज्य ख़त्म होते जा रहे थे. सिद्धारमैया न केवल ओबीसी का प्रतिनिधित्व करते हैं बल्कि पिछड़ी जातियों के सशक्तिकरण के आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं.”

प्रोफे़सर शास्त्री के मुताबिक़, “यह फ़ैसला राहुल गांधी के बीजेपी पर हमले के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी की एकता को आगे बढ़ाने के बड़े एजेंडे में शामिल हो गया. नहीं तो यह उस धारणा को धूमिल कर देगा जो राहुल गांधी बना रहे हैं या जिस तरह से जाति जनगणना के मुद्दे पर बीजेपी पर हमला कर रहे हैं.”

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