झारखंड विधानसभा चुनाव: इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर तकरार का कितना असर
झारखंड में विधानसभा चुनाव दो चरणों में और मतगणना 23 नवंबर को
झारखंड चुनाव को लेकर बीते शनिवार को बीजेपी ने अपने 66 प्रत्याशियों की पहलू सूची जारी की. बीजेपी और सहयोगी दलों के साथ सीटों का बंटवारा लगभग पूरी तरह तय माना जा रहा है.
वहीं दूसरी ओर शनिवार को ही ‘इंडिया’ गठबंधन का आपसी मनमुटाव खुलकर बाहर आ गया.
हेमंत सोरेन के आवास पर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ दिन भर बैठक चलती रही. देर शाम हेमंत सोरेन ने कहा कि ‘इंडिया’ गठबंधन सभी 81 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ेगा.
उन्होंने कहा, ”पिछली बार हम, कांग्रेस और आरजेडी साथ लड़े थे. इस बार लेफ्ट पार्टी भी गठबंधन का हिस्सा हैं. तय किया है कि 70 सीटों पर कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) चुनाव लड़ेंगे. बची हुई 11 सीटों पर अन्य सहयोगी (आरजेडी और वाम दल) लड़ेंगे. कौन कहां से लड़ेगा, उसका फ़ैसला बाद में होगा.”
फिलहाल अनुमान ये लगाया जा रहा है कि जेएमएम 41 और कांग्रेस 29 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है. बाक़ी बची 11 सीटों में 7 आरजेडी और 4 वाम दलों को ऑफर किया गया है.
जब हेमंत ये बात पत्रकारों के साथ साझा कर रहे थे, उनके बगल में कांग्रेस के झारखंड प्रभारी गुलाम अहमद मीर के अलावा कांग्रेस और जेएमएम के अन्य नेता तो मौजूद थे, लेकिन रांची में मौजूद होने के बावजूद तेजस्वी यादव या आरजेडी और लेफ्ट का कोई नेता नहीं था.
इसी दिन राहुल गांधी भी संविधान सम्मान सम्मेलन में हिस्सा लेने रांची पहुंचे थे. रांची के जिस होटल में हेमंत सोरेन राहुल गांधी से मिलने गए, वहीं तेजस्वी भी ठहरे थे. लेकिन वह राहुल गांधी से नहीं मिले.
हेमंत की घोषणा के बाद आरजेडी ने बगावती सुर अपना लिए.
पार्टी के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने रांची में प्रेस कांन्फ्रेंस करते हुए कहा, ”जब सभी दल के नेता रांची में ही मौजूद हैं तो हम इस बात से दुखी हैं कि गठबंधन की बनावट की प्रक्रिया में हमें शामिल नहीं किया गया.”
उन्होंने आगे कहा, ”सारे फ़ैसले ‘मैगी टू मिनट नूडल्स’ नहीं होते हैं. हमारे पास तमाम विकल्प खुले हैं.”
जेएमएम महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य बीबीसी से कहते हैं, ”अलायंस में सबकुछ ठीक है. जहां तक बात आरजेडी की है तो 18 से 19 अक्टूबर के बीच तेजस्वी यादव के साथ तीन बार बैठक हुई है. उन्हें सात सीट ऑफ़र किया गया है.”
आरजेडी और माले को घोषणा करते वक़्त दूर क्यों रखा गया?
वहीं माले विधायक विनोद सिंह कहते हैं, ”क्यों दूर रखा गया इसका जवाब तो जेएमएम और कांग्रेस ही दे सकती है.”
उन्होंने कहा, ”वैसे तो हमने एक दर्जन सीटों की लिस्ट दी है, लेकिन छह सीट निरसा, सिंदरी, बगोदर, राजधनवार, जमुआ और पांकी की मांग कर रहे हैं. ये वो सीट हैं, जहां हम या तो जीतते रहे हैं या फिर दूसरे नंबर पर रहे हैं. इन सीटों पर जेएमएम या कांग्रेस को कभी जीत हासिल भी नहीं हुई है.”
उनका कहना है, ”हरियाणा से सबक लेते हुए बड़ी पार्टियों को बड़ा दिल दिखाना चाहिए. अगर दायरा बढ़ाना है तो उन्हें अपनी सीटें कम करनी चाहिए.”
झारखंड कांग्रेस के उपाध्यक्ष बंधु तिर्की मानते हैं कि इंडिया गठबंधन में फिलहाल सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.
वो कहते हैं, ”अगर तेजी से डैमेज कंट्रोल नहीं किया गया तो जनता के बीच इसका ग़लत मैसेज जाएगा. हालांकि अभी बहुत देर नहीं हुई है. हम आपस में बातचीत कर रहे हैं. हरियाणा जैसी स्थिति यहां नहीं होने देंगे.”
इन सब के बीच एनसीपी शरद गुट ने भी 6 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए हैं.
पिछले चुनाव में किसको कितना हासिल हुआ?
इंडिया गठबंधन की ओर से देखें तो पिछले चुनाव में जेएमएम 43, कांग्रेस 31 और आरजेडी ने सात सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. इसमें जेएमएम को 30, कांग्रेस को 16 और आरजेडी को 1 सीट पर सफलता मिली थी.
उसी चुनाव में बाबूलाल मरांडी की तत्कालीन पार्टी झारखंड विकास मोर्चा को भी तीन सीटों पर सफलता मिली थी. बाद में बाबूलाल के बीजेपी में शामिल होने पर बचे दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
वाम मोर्चा को एक सीट पर सफलता मिली थी. जिसने हेमंत सरकार को अपना समर्थन दिया था.
साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में कुल 88 पार्टियों ने अपने उम्मीदवार उतारे थे. निर्दलीय को मिलाकर कुल 1216 प्रत्याशी मैदान में थे.
चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक़, बीजेपी को सबसे अधिक 33.37 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे.
वहीं जेएमएम को 18.72, कांग्रेस को 13.88, आजसू पार्टी को 8.1, जेवीएम को 5.45 और आरजेडी को 2.75 प्रतिशत मत हासिल हुए थे.
आरजेडी का अड़ जाना कितना सही?
फिलहाल आरजेडी को सात सीटें मिलने की बात हुई है. अगर पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो सात में से केवल एक चतरा विधानसभा सीट में उसे सफलता मिली थी.
जबकि बाक़ी छह सीटों में देवघर, गोड्डा, कोडरमा, छतरपुर और हुसैनाबाद में वह दूसरे स्थान पर रही थी. इन सीटों पर हार का अंतर भी 1,500 से 3,000 वोटों का रहा था. वहीं बरकट्ठा में सातवें स्थान पर थी.
साल 2014 में कांग्रेस, जेएमएम, आरजेडी सरकार में थी. लेकिन विधानसभा चुनाव के समय यह गठबंधन टूट गया और जेएमएम अकेले चुनाव लड़ी. कांग्रेस और आरजेडी साथ लड़े. इसमें आरजेडी को एक भी सीट नहीं मिली.
यही नहीं, बीते बिहार विधानसभा चुनाव के समय भी जेएमएम ने चकाई, धमदाहा और कटोरिया सीट की मांग की थी. जिसे यूपीए की तरफ से ठुकरा दिया गया था.
इधर रविवार 20 अक्तूबर को भी आरजेडी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. यहां मनोज झा ने कहा, ”हम 18 से 22 सीटों पर मजबूत हैं. ये अगर 12 से 13 भी हो तो यह स्वीकार्य है. सम्मानजनक सीट मिलनी चाहिए.”
वो यहीं नहीं रुके और कांग्रेस पर इशारों में निशाना साधते हुए कहा, ”कई विधायक हिलने डुलने लगे हैं. बंगाल में नगदी के साथ पकड़ाने लगे हैं. हमारा तो एक ही विधायक था, कभी सुना उनके बारे में कि कहीं जा रहे हैं.”
साथ में उन्होंने यह भी कहा, ”कोई बीजेपी के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा है तो आरजेडी है. इस गठबंधन की नींव हमने रखी है, हम भला इसकी हत्या क्यों करेंगे. सोमवार को हम प्रत्याशियों की घोषणा कर देंगे.”
कौन और क्यों दे कुर्बानी
पूरे प्रकरण को लेकर वरिष्ठ पत्रकार आनंद मोहन कहते हैं, ”गठबंधन में रहना आरजेडी, वाम दल या फिर कांग्रेस की मजबूरी और ज़रूरत दोनों है. हेमंत सोरेन ने साफ कहा है कि जिस सीट पर जिसके जीतने की संभावना है वही उन्हें मिलना चाहिए.”
आनंद मोहन कहते हैं, ”सीट रीटेन करने का स्ट्राइक रेट जेएमएम का बेहतर है. इसमें इंडिया अलायंस के बाक़ी दल काफी पीछे हैं.”
आंकड़ों पर गौर करें तो, साल 2014 में जेएमएम 19, कांग्रेस 6, आरजेडी 0 पर थी. साल 2009 में जेएमएम 18, कांग्रेस 14, आरजेडी 5 पर जीत हासिल की थी. वहीं साल 2005 में जेएमएम 17, कांग्रेस 9, आरजेडी 7 सीटों पर रही थी.
आनंद मोहन कहते हैं, ”हेमंत कांग्रेस के उन प्रत्याशियों का टिकट भी एश्योर करवा रहे हैं, जिनके जीतने की संभावना है और उनके टिकट कटने की भी चर्चा है. जाहिर है, वो बाक़ी दलों को संभाल और पुचकार भी रहे हैं.”
नेशनल इलेक्शन वाच के स्टेट कन्वीनर सुधीर पाल बीबीसी से कहते हैं, ”जेएमएम के लिए इंडिया या एनडीए, किसी भी गठबंधन में जाना आसान है. वो पूरी तरह विन विन सिचुएशन में है. यहां इंडिया अलायंस के बाक़ी दलों को देखना होगा कि सरकार बनानी है, तो आसानी से गठबंधन करें और जनता को एक मजबूत संदेश दें.”
उन्होंने बताया, ”जेएमएम का संगठन यहां मजबूत है. बाक़ी दलों में संगठन के बूते कम, बल्कि नेता अपने बूते अधिक चुनाव जीतते रहे हैं. अगर इस वक़्त एकता का मैसेज नहीं दिया गया तो नैरेटिव विपक्ष के हाथ में चला जाएगा. इस डैमेज को कंट्रोल करना आख़िरी वक़्त में मुश्किल होगा.”
तैयारी पक्ष बनाम विपक्ष
दूसरी तरफ बीजेपी ने बड़ी आसानी से अपना गठबंधन तय कर लिया. जदयू को सीट तो दी, लेकिन ये कौन सी सीटें होंगी, ये बीजेपी ने ही तय किया.
पार्टी के उम्मीदवार सरयू राय पिछले विधानसभा चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी से रघुवर दास के ख़िलाफ़ लड़े थे और जीत हासिल की थी. जबकि इस बार उन्हें जमशेदपुर पश्चिमी सीट दिया गई है.
पिछली बार ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन यानी आजसू के साथ चुनाव पूर्व समझौता टूट गया था. जिसका नुकसान बीजेपी को हुआ. इस बार दस सीटें देकर आजसू के साथ भी गठबंधन कर लिया गया है.
वहीं लोजपा जहां तीन सीट मांग रही थी, उसे एक सीट देकर मना लिया गया है.
बीते एक महीने में पीएम नरेंद्र मोदी दो बार झारखंड का दौरा कर चुके हैं, वहीं राहुल गांधी एक बार झारखंड पहुंचे हैं.
इधर हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन चुनाव की घोषणा से पहले सरकारी कार्यक्रम में ही सही, हर दिन आम जन के बीच पहुंच रहे हैं.