उनके सौतेले भाई सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ अल सऊद किंग बनने वाले थे और उनके सबसे प्रिय बेटे मोहम्मद बिन सलमान भी ख़ुद को सत्ता के लिए तैयार कर रहे थे.
आम तौर पर एमबीएस के नाम से चर्चित मोहम्मद बिन सलमान उस समय महज 29 साल के थे लेकिन उनके पास सऊदी अरब के लिए बहुत बड़ा प्लान था. आप इसे सऊदी अरब के इतिहास का सबसे बड़ा प्लान कह सकते हैं.
लेकिन उन्हें इस बात का डर था कि उनके अपने सऊदी शाही परिवार के लोग उनके ख़िलाफ़ साज़िश रच सकते हैं.इसलिए, उसी महीने एक रोज़ आधी रात को एमबीएस ने एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी को उसका विश्वास हासिल करने के लिए महल में बुलाया.अधिकारी साद अल-जाबरी से उनका फ़ोन कमरे के बाहर ही टेबल पर रखवा लिया गया था. ख़ुद एमबीएस ने भी अपना फोन बाहर रख दिया था.प्रिंस सलमान महल के जासूसों से इतने सावधान थे कि उन्होंने कमरे के एकमात्र लैंडलाइन का भी तार खींचकर उसे डिस्कनेक्ट कर दिया था.उस मीटिंग के बारे में जाबरी कहते हैं कि एमबीएस ने उन्हें अपनी योजना के बारे में विस्तार से बताया कि कैसे वो अपने “सोए हुए देश को जगाकर” आगे ले जाना चाहते हैं, जिससे वह वैश्विक मंच पर अपनी सही जगह हासिल कर सके.उसी योजना के तहत एमबीएस ने यह भी बताया कि दुनिया में सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने वाली तेल उत्पादक कंपनी अरामको में हिस्सेदारी बेचकर अपनी अर्थव्यवस्था की तेल से निर्भरता दूर करना शुरू कर देंगे. टैक्सी फ़र्म उबर सहित सिलिकॉन वैली में टेक स्टार्टअप में अरबों का निवेश करेंगे.एमबीएस ने यह भी कहा कि वो सऊदी की महिलाओं को काम करने की आज़ादी देकर देश में 60 लाख से ज़्यादा नई नौकरियों का सृजन करेंगे.एमबीएस की बातों से अचंभित जाबरी ने उनसे सवाल किया कि आखिर उनकी महत्वाकांक्षा की सीमा क्या है?एमबीएस ने सीधा और सरल सा जवाब दिया, “क्या आपने सिकंदर महान के बारे में सुना है?”इसके बाद दोनों के बीच की बैठक ख़त्म हो गई. दोनों की मीटिंग जो पहले से आधे घंटे के लिए तय थी वो तीन घंटे तक चली.जाबरी के मोबाइल पर उनके सरकारी सहयोगियों के कई मिस्ड कॉल आए हुए थे, ये लोग जाबरी के लंबे समय से ग़ायब होने से चिंतित थे, ये मिस्ड कॉल देखते हुए जाबरी कमरे से बाहर चले गए.
सऊदी के डिफ़ेंस सिस्टम में साद अल-जाबरी की पैठ इतने अंदर तक थी कि उनकी दोस्ती सीआईए और एमआई 6 के प्रमुखों के साथ थी.हालांकि, सऊदी सरकार जाबरी को एक “अविश्वसनीय” पूर्व अधिकारी मानती है. लेकिन बीबीसी को दिए साक्षात्कार में वो एक ऐसे सऊदी मूल के अधिकारी जान पड़ते हैं, जिनके पास सऊदी क्राउन प्रिंस के बारे में सबसे ज़्यादा और सटीक जानकारी है.इंटरव्यू में वह यह भी बताने की हिम्मत करते हैं कि कैसे क्राउन प्रिंस सऊदी अरब पर शासन करते हैं और उन्होंने इस इंटरव्यू में दुर्लभ और चौंकाने वाली जानकारियां दी हैं.क्राउन प्रिंस को व्यक्तिगत रूप से जानने वाले कई लोगों से बात करके बीबीसी ने उन घटनाओं की पड़ताल की जिसने एमबीएस को ‘कुख़्यात’ बना दिया.इन घटनाओं में साल 2018 में सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या और यमन में विनाशकारी युद्ध की शुरुआत भी शामिल है.अपने पिता के लगातार कमज़ोर होने की स्थिति में, 38 साल के एमबीएस अब इस्लाम के जन्मस्थान और दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक देश के वास्तविक प्रभारी हैं.साद अल-जाबरी को बताई गई कई अहम योजनाओं की शुरुआत उन्होंने कर दी है.इसी के साथ ही उन पर अभिव्यक्ति की आज़ादी को छीनने, मृत्युदंड का व्यापक इस्तेमाल करने और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को जेल भेजने समेत मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे हैं.
एमबीएस के पिता सऊदी अरब के पहले राजा के 42 बेटों में से एक हैं और वहाँ की सत्ता पारंपरिक रूप से इन बेटों के बीच ही स्थानांतरित होती रही है.2011 और 2012 में किंग अब्दुल्लाह के दो बेटों की अचानक मृत्यु हो जाने के बाद सलमान उत्तराधिकारियों की दौड़ में सबसे आगे आ गए थे.पश्चिमी जासूसी एजेंसियां ख़ासकर सऊदी अरब का अगला राजा कौन होगा.. सरीख़े मुद्दों पर खूब जानकारी निकालने की कोशिश करती हैं.इस लिहाज से कम उम्र होने के कारण और दुनिया की नज़रों से दूर होने के कारण एमबीएस एजेंसियों की रडार पर भी नहीं थे.2014 तक एमआई6 के प्रमुख रहे सर जॉन सॉवर्स कहते हैं, “किंग सलमान अपेक्षाकृत गुमनामी में बड़े हुए और ऐसा कभी नहीं लगा कि वो सत्ता तक पहुंचेंगे.”क्राउन प्रिंस एक ऐसे महल में बड़े हुए जहाँ ग़लत व्यवहार के नतीजे या तो बहुत कम होते थे या होते ही नहीं थे.ऐसे में उनकी ये आदत समझी जा सकती है कि वो अपने फ़ैसलों के असर के बारे में तब तक नहीं सोचते हैं जब तक वो फ़ैसला ले नहीं लेते हैं.एमबीएस की ये आदत पहली बार उनके किशोरावस्था में सामने आई थी, उस वक़्त उन्हें ”अबू रसासा” या ”फादर ऑफ़ बुलेट” नाम दिया गया था.उन्होंने कथित तौर पर एक जज को गोली भेज दी थी, जब उस जज ने प्रॉपर्टी के विवाद में उनका विरोध किया था.सर जॉन सॉवर्स कहते हैं, ”उनमें एक तरह की निष्ठुरता रही है.”वो कहते हैं, ”उन्हें विरोध पसंद नहीं है. लेकिन इसी वजह से वो उन बदलाव को लागू करने में कामयाब हुए हैं जो अब तक कोई भी सऊदी अरब का लीडर नहीं कर पाया था.”एमआई6 के पूर्व प्रमुख ने यह भी कहा कि सबसे स्वागत योग्य बदलावों में से एक विदेशी मस्जिदों और धार्मिक स्कूलों की फंडिंग में कटौती करना था, जिसके बारे में माना जाने लगा था कि ये जगह इस्लामी जिहाद को बढ़ावा देने वाली जगह बन गई है जो पश्चिम की सुरक्षा के लिए बड़ी बात थी.